Sarshar Siddiqui – Profile & Biography

Sarshar Siddiqui: असरार हुसैन मोहम्मद अमान, जिन्हें सरशार के नाम से भी जाना जाता था, 25 दिसंबर 1926 को कानपुर, उत्तर प्रदेश, हिंदुस्तान में पैदा हुए थे।

sarshar siddiqui

सरशार सिद्दीकी पाकिस्तान के प्रमुख शायर और विद्वान के रूप में माने जाते हैं, जिन्होंने अपनी अनोखी शैली के शेरों की पहचान बनाई, जिसके कारण उनका सम्मान पाकिस्तान के सर्वोत्तम शायरों में होता है। उन्होंने मैट्रिक पूरा करने के बाद हलीम मुस्लिम कॉलेज, कानपुर से इंटरमीडिएट पास किया।

असरार सरशार सिद्दीकी के पिता थे, जो कि हकीम थे और दिल्ली के तिब्बी कॉलेज में उस्ताद के पद पर फाइज़ थे। सरशार सिद्दीकी का तालुक़ ज़िला इटावा के इलाके आज़ीमाबाद से था। उन्होंने 1955-1984 में नेशनल बैंक ऑफ़ पाकिस्तान में भी काम किया था जब वह 1949 में पाकिस्तान हिज्रत कर रहे थे।

वह एक्सप्रेस और जंग अख़बारात के रचनात्मक कॉलम निगार के रूप में भी माने जाते थे, लेकिन लेजेंड शायर सरशार सिद्दीकी ने निगाह में अपनी पहली ग़ज़ल लिखी जो सन् 1949 में शाय हुई थी क्योंकि उनकी पहली किताब साल 1947 में शाय हो चुकी थी। फिर उन्होंने सन् 1962 में एक और “किताब पत्थर की लेकर” शाय की, और उनकी आख़री शायरी की किताब “ख़िज़ान की आख़री शाम” थी जो 1988 में शाय हुई।

सरशार सिद्दीकी ने नात भी कही जिसके लिए उन्होंने ग़ज़ल को ज़रिया-ए-इज़हार बनाया। उनकी नातों में बेक़रारी और अज़्ताब है तो उसका जवाब बतरीक़-ए-इत्मिनान और सुकून भी है। शायद ग़ज़ल की हैयात ही इस तरह के ज़बात को मुकम्मल तौर पर और मुतवाज़न अंदाज़ में बयान का ज़रिया हो सकती है।

Sarshar Siddiqui Shayari

नए लहजे में बेसुद-ए-अज़्ज़ ओ नदामत लिखूं,
सिर्फ़ आश्क़ों की ज़ुबां में, तेरी मदहबत लिखूं।

दिल धड़कता है तो आती है सदाएँ लब्बैक,
मैं उसे रूह की तस्दीक़ मोहब्बत लिखूं।

दर का’बा हो, कभी हो मेरे सरकार का दर,
काश यूँ दरबदरी मेरा मक़दर हो जाए।

हंगामा-ए-हयात में गोशा नशीं हूँ मैं,
या रब! क़ुबूल कर मेरा अंदाज़-ए-आतिकाफ़।

ऐ ख़ैर ओ शर-निगार, मेरे माज़ी से दरगुज़र,
ऐ मुश्फ़िक़ ओ करीम, मेरी लग़्ज़िशें माफ़।

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Sarshar Siddiqui: एक कलात्मक रूह का हिस्सा

सरशर सिद्दीकी का कलात्मक जज्बा उनकी शायरी में नुमाया है। उनकी मदाही शायरी उस शायरी अद्राक का पूरा नुमांदगी करती है।

उन्होंने 8 सितंबर 2014 को 88 साल की उम्र में कराची में फेफड़ों के कैंसर की वजह से इंतिक़ाल कर गए।

सरशर सिद्दीकी जैसे रुवायतों का अमीन शख्स, मोहब्बतों को निछावर करने वाला, ग़ैरों को अपनाने वाला आज हमारे दरमियाँ नहीं लेकिन वह जो अपनी ज़ात में अंजुमन थे दुनिया की अंजुमन को सोना कर के जन्नतों के बासी बन गए। आज उनकी यादें हमारे लिए सरमाया-ए-इफ़्तिख़ार हैं। हम आने वाली नसलों को कह सकते हैं हमने उन्हें देखा था, उन्हें सुना था, और उनकी छाँवों से फ़ैज़ उठाया था।


Mumtaz Shayar Sarshar Saadiqi Sahab ke Chand Ashaar

वो मौज-ए सुबह भी हो तो होशियार ही रहना,
सूखे हुए पत्ते हो बिखर जाओगे लोगों…

हालात ने चेहरों पे बहुत ज़ुल्म किए हैं,
आईना अगर देखा तो डर जाओगे लोगों…

इस इरादे से उठाया है छलकता हुआ जाम,
हम रहें आज कि ये गर्दिश-ए आम रहे…

बे-सबब कोई नवाज़िश नहीं करता सर-सर,
देखें क्या उनकी एनायत का अंजाम रहे…

इश्क़ तक अपनी दस्तरस भी नहीं,
और दिल मायल होस भी नहीं…

हम असीरों के वास्ते सर-सर,
रस्म पाबंदी-ए क़फ़स भी नहीं।

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