सय्यद शरफत अली, जिनका पेन नाम “सहबा लखनवी” था, उनका जन्म लखनऊ के एक प्राचीन शहर में हुआ था। उनका जन्म तारीख 25 दिसम्बर 1919 को भोपाल रियासत में हुआ था। उन्होंने अपनी शिक्षा को भोपाल, लखनऊ और मुंबई से प्राप्त की और 1945 में भोपाल से मासिक “अफ़कार” का आयोजन किया।
पाकिस्तान के गठन के बाद, सहबा लखनवी कराची स्थानांतरित हुए और यहाँ 1951 में “अफ़कार” का फिर से आयोजन किया। उनका “अफ़कार” से प्रेम उनकी मृत्यु तक जारी रही और यह पत्रिका लगातार 57 साल तक किसी रुकावट के बिना प्रकाशित होती रही।
Sahba lakhnavi के शायरी संग्रह:
- “माह पारे”
- “ज़ेर-ए-आसमान”
Nasri majmooay:
- “मेरे ख्वाबों की सरज़मीन” (सफ़रनामा मशरिक़ी पाकिस्तान)
- “इक़बाल और भोपाल”
- “मजाज़ एक आहंग”
- “अर्मग़ान-ए-मजनूं”
- “रईस अमरोहवी फ़न और शख़्सियत”
- “मंटो एक किताब”
सहबा लखनवी का इंतिक़ाल 30 मार्च 2002 को कराची में हुआ।
यह था सहबा लखनवी, एक शायर और अदीब जिन्होंने अपने शब्दों से कायामती रूह को ज़िंदा रखा। उनकी शायरी और नसर उनकी यादों में हमेशा ज़िंदा रहेगी।
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Sahba lakhnavi Gazal
यह काली रात, यह ख़ामोशियाँ, माज़ अल्लाह
हुजूम-ए-यास, यह बेचैनियाँ, माज़ अल्लाह
दिल-ए-हज़ीं, यह तसव्वुर की फित्ना सामानी
किसी की याद में बेदारियाँ, माज़ अल्लाह
आमंद रहे हैं मेरे दिल पर यह बादल
यह ज़ब्त-ए-ग़म की सितमरानियाँ, माज़ अल्लाह
लबों पर मेहर-ए-नज़र, सिर्फ़-ए-जुस्तुजू पैहम
जिगर दर्द की अंगड़ाइयाँ, माज़ अल्लाह
यह शाम-ए-हिज्र, यह वीरानी शब-ए-देजोर
यह साएं साएं, यह तन्हाइयाँ, माज़ अल्लाह
यह सर्द सर्द सी आँखों में गर्म गर्म सरशक
मता-ए-दर्द की चंगारियाँ, माज़ अल्लाह
यह फूले फूले पपोटों में आछ्टी आछ्टी सी नींद
गुलाबी दोरों में यह लालियाँ, माज़ अल्लाह
किसी फ़रेब-ए-तमन्ना में बहकी बहकी निगाह
किसी ख़याल की परछाईयाँ, माज़ अल्लाह
हिजाब-ए-साज़ पे अंदाज़-ए-सोज़, अरे तौबा!
वुजूद-ए-शौक़ की नाकामियाँ, माज़ अल्लाह
निगाह-ए-महव-ए-तमाशा, ख़िर्द ख़राब-ए-जुनून
तख़य्युलात की मज़बूरियाँ, माज़ अल्लाह
कहाँ कहाँ लिए फिरती है आरज़ू सहबा,
मता-ए-ज़ीस्त की नादानियाँ, माज़ अल्लाह
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