Munir Niazi : मोहम्मद मुनीर खान, जो कि तख़ल्लुस “मुनीर” है, 9 अप्रैल 1928 को खानपुर, होशियारपुर ज़िले में पैदा हुए। उन्होंने 1948 में अपना बीए किया। भारत के ताक़सीम के बाद पाकिस्तान आए। उनका ताल्लुक़ मुख्तलिफ अख़बारात और ज़रा’ईद से रहा है।
फ़िल्मी नग़्मा निगारी की ग़ज़ल उनकी बुनियादी पहचान है। पाबंदी और आज़ाद नज़्में भी काफ़ी तादाद में लिखी हैं। नस्री नज़्में भी लिखते थे। पंजाबी के भी बहुत अच्छे शायर थे। वह उर्दू और पंजाबी के 30 से ज़्यादा किताबों के मुसन्निफ़ थे।
Munir Niazi मजमूआँ के नाम ये हैं:
- तेज़ हवा और तन्हा फूल
- जंगल में धनक
- दुश्मनों के दरमियाँ शाम
- माह-ए-मुनीर
- इस बे वफ़ा का शहर
- छह रंगीन दरवाज़े
उनको इकट्ठा करके “कुलियात-ए-मुनीर”, “ग़ज़लियात-ए-मुनीर”, और “नज़्म-ए-मुनीर” छाप गई है। आप 26 दिसम्बर 2006 को लाहौर में इंतिक़ाल कर गए। उन्हें एकादमी अदबियात पाकिस्तान का कमाल-ए-फ़न अवार्ड दिया गया। उन्हें हुस्न कारकर्दगी अवार्ड के इलावा दो मर्तबा सितारा-ए-इम्तियाज़ से भी नवाज़ा गया।
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Munir Niazi Shayari
अपनी ही तेज़-ए-अदा से आप घायल हो गया
चाँद ने पानी में देखा और पागल हो गया…
ख़ुमार-ए-शब में उसे मैं सलाम कर बैठा
जो काम करना था मुझको वो काम कर बैठा…
ग़ैरों से मिल के ही सही, बेबाक तो हुआ
बारे वो शोख पहले से चालाक तो हुआ…
ग़म की बारिश ने भी तेरे नक़्श को धोया नहीं
तू ने मुझको खो दिया, मैं ने तुझे खोया नहीं…
कल मैंने उसे देखा तो देखा नहीं गया
मुझसे बिछड़ के वो भी बहुत ग़म से छूर गया…
ख़याल जिसका था मुझे, ख़याल में मिला मुझे
सवाल का जवाब भी सवाल में मिला मुझे…
मोहब्बत अब नहीं होगी, ये कुछ दिन बाद होगी
गुज़र जाएंगे जब ये दिन, ये उनकी याद में होगी…
मुद्दत के बाद आज उसे देख कर, मुनीर
एक बार दिल तो धड़का मगर फिर संभल गया…
आँसू की रवां नहर है और हम हैं दोस्त
इस बेवफ़ा का शहर है और हम हैं दोस्त…
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