All writings of Dr. Qamaruddin

Dr. Qamaruddin

डॉक्टर क़मरुद्दीन, जिन्हें क़मर के नाम से भी जाना जाता था, 25 दिसम्बर, 1938 को भांडीर, जिला दतिया, मध्य प्रदेश में हुसैन बख़्श और नसीरा बी के यहाँ पैदा हुए।

शिक्षा: उन्होंने एमए (फाइन आर्ट्स) और एमए (उर्दू) की उच्च शिक्षा प्राप्त की। वे शिक्षा से जुड़े रहे। 1958 में उन्होंने अबरू अहसनी गुनौरी से कविताओं का सफ़र शुरू किया।

रचनाएँ:

  • “क़ातिल लकीरें” (1971), हिंदी में कहानियों का संग्रह,
  • “संगम” (1998), ग़ज़लों का संग्रह,
  • “कशिश” (2013), एक और ग़ज़लों का संग्रह।

वे कविता और साहित्य के महान प्रेमी थे। कई पुस्तकों के अलावा, उन्होंने ग्वालियर की कविता और साहित्य के इतिहास पर एक ऐतिहासिक पुस्तक की भी रचना की। वर्षों तक, उन्होंने अपने पेंशन के फंड से उर्दू साहित्यिक पत्रिका “महफ़िल-ए-फ़नकार” प्रकाशित की। महफ़िल-ए-फ़नकार की मार्च-जून 2021 की संस्करण अंतिम संस्करण के रूप में प्रकाशित हुआ था।

डॉक्टर क़मर ने 27 अक्टूबर, 2021 को ग्वालियर में इंतेक़ाल किया और उनका अंतिम संस्कार ग्वालियर के बेरियां वाले क़ब्रिस्तान, स्किंडिया कॉम्पाउंड, ग्वालियर में किया गया।

Dr. Qamaruddin Gazal

इंसान को इंसान से कुछ काम नहीं होता,
दुनिया में मोहब्बत का जब नाम नहीं होता।

ये कैसी हक़ीक़त है ऐ दोस्त मोहब्बत में,
आग़ाज़ तो होता है, अंजाम नहीं होता।

तुमसे तो कुछ नहीं होगा ऐ चारागरो जाओ,
बीमार मोहब्बत को आराम नहीं होता।

ये मंज़िल आख़िर है, आ जाओ ऐयादत को,
आ जाने से ऐसे में इलज़ाम नहीं होता।

लाज़िम है समझ लेना नज़रों की ज़ुबान साहिब,
लफ़्ज़ों से मोहब्बत में कुछ काम नहीं होता।

बढ़ते हुए धारे हों, बर्पा हो क़मर,
हिम्मत से जो बढ़ जाए, नाकाम नहीं होता।

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Dr. Qamaruddin Gazal

लोग फिरते हैं दर-ब-दर तनहा,
हो गया क्या हर एक घर तनहा।

तू किसी आफताब की मानिंद,
वक़्त की ऊट से उभर तनहा।

रास्ता ग़म का कितना नाज़ुक है,
इस तरफ़ से कभी गुज़र तनहा।

कम से कम हो रहे हैं अहल-ए-हुनर,
रह न जाए कहीं हुनर तनहा।

रौशनी सबके काम आती है,
शमा जलती है रात भर तनहा।

छोड़ दे हौसला जो साथ अगर,
कट नहीं पाएगा सफ़र तनहा।

कटती जाती है ज़िंदगी तो क़मर,
होती जाती है हर डगर तनहा।

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