All writings of Maratib Akhtar

Syed Maratib Akhtar: एक शायर का सफर

सय्यद मरातिब अख्तर, जो 9 मई 1939 को शेखुपुरा (ओकाड़ा) में पैदा हुए, उनकी शुरुआती तालीम शेखुपुरा में मिलती। उसके बाद, उन्होंने गवर्नमेंट हाई स्कूल साहीवाल से मैट्रिक का इम्तिहान पास किया। मैट्रिक के बाद, म्युनिसिपल कॉलेज ओकाड़ा में तालीम रही .

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और वहां से जल्द इस्लामिया कॉलेज लाहौर चले गए, जहां उन्हें डॉक्टर तब्सम कश्मीरी और डॉक्टर गोहर नोशाही जैसे दोस्त मिले। उस पर ये कि सج्जाद बाक़र रज़वी जैसा उस्ताद भी मुंसर आया। साहीवाल में आते तो मजीद अमजद जैसे शायर से मुलाकातें होतीं। मजीद अमजद से पैदा होने वाला ताल्लुक बाद अजाँ निहायत मज़बूत बुनियादों पर इस्तवार हुआ।

सय्यद मरातिब अख्तर का पहला शेर मज्मूआ “जंगल से परे सूरज” के नाम से सातवाँ दहाई में शाया हुआ। मवाद और उस्लूब की जिद्दत के ऐतबार से ये उस दौर की नुमाइंदा ग़ज़लों का इंतिखाब है। मरातिब अख्तर की ग़ज़लों को मजीद अमजद ने “नज़मिनें” कहा था।

सय्यद मरातिब अख्तर के दिगर शेर मज्मुओं में “हिसार-ए-हाल”, “गंज गुफ्तार”, और “गुज़रा बिन बरसे बादल” अहम हैं। उनकी हयात और शायरी कायनात पर सय्यद अली थानी गिलानी की तस्नीफ “हिस्बे मरातिब” निहायत अहमियत की हामिल है। इस के इलावा “नग़्म मरातिब” के नाम से अवन उल हसन ग़ाज़ी की मुर्तब करदह किताब भी क़ाबिल ज़िक्र है।

सय्यद मरातिब अख्तर की शख्सियत और फ़न पर एमए के कई तहक़ीकी मकाला जातें तहरीर की जा चुकी हैं। सय्यद मरातिब अख्तर एक बा-अमल और बा-शरआ सूफ़ी थे, प्रोफेसर अब्दुल कयूम सबा उनकी शख्सियत के इस पहलू पर गुफ्तगू करते हुए कहते हैं:

मैंने सिर्फ़ यह देखा के ये शख्स सब कुछ देखने सुनने के लिए ज़रूर तैयार है, पूरी नर्मी और इख़लास और शराफ़त से मगर इस शख्स के लिए ख़ुदा और अपनी ज़ात की ग़वाही पहली और आख़िरी ग़वाही है। इस ग़वाही से पहले और बाद और साथ ही दूसरा कोई और मंज़र देखना और दूसरी कोई आवाज़ सुनना इस शख्स के लिए क़ताई बे-मफ़हूम अमल है।

सय्यद मरातिब अख्तर 25 दिसम्बर 1988 को इंतिक़ाल कर गए, इंतिक़ाल के वक़्त उनकी उम्र 49 बरस थी। और शेखुपुरा में ही तह-ए-खाक दफ़न हैं।

Syed Maratib Akhtar Gazal

अदक यह बात सही, फिर भी कर दिखाएँगे,
उड़ते हुए पहुंच कर तुझे बुलाएँगे।

मुझे वह वक़्त, वह लम्हें याद आएंगे,
ये निन्ने लान में जब तितलियाँ उड़ाएंगे।

क्या है ‘आहद’ अकेले रहेंगे हम दैम,
भरी रहे तेरी दुनिया में हम न आएंगे।

समुंदर का रास्ता टकटी रहेगी सांवलियाँ,
जो पिंजरों की तरह लौट कर न आएंगे।

मेरी क़सम तुझे शेहला न रो, न हो बेज़ाब,
तेरे ज़वाल के ये दिन भी बीत जाएंगे।

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Maratib Akhtar Gazal

पहुंचा हूँ आसमान पे तुझे ढूंढ़ता हुआ,
अए मुख्तसर बसीत सितारे, क़रीब आ।

बिखरे हुए तलब के तकाज़े उधर उधर,
कपड़े, ग्लास, क़हक़हाएं, साहिल पे जा बह जा।

बेटा सुनो कहा ये मुझे एक बुज़ुर्ग ने,
महदूद किस क़दर है ये टुकड़ा ज़मीन का।

इन बस्तियों के पार उधर दूर उस तरफ़,
लरज़ान है ख़ौफ़ मौत से इंसान आज का।

पागल सा एक आदमी कल दूर तक मुझे,
मुड़ मुड़ के देखता गया, पहचानता गया।

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